समन्दर का किनारा––बालू के दूह––देखकर बहुत खुश हुए, समुद्र देखकर जामे से बाहर हो गये।
जगन्नाथ जी की स्मृति में बहुत से घोंघे समुद्र के किनारे से चुनकर रख लिये, कुछ छोटे छोटे शंख-से।
मार्कण्डेय, वटकृष्ण, चन्दनतालाब आदि प्रसिद्ध जगहें देखते फिरे ।
मन्दिर के अहाते में और छोटे छोटे मन्दिर हैं।
एक एक देखते फिरे। एकादशी को एक जगह उल्टा टंगी देखकर हँसे।
सत्तीदीन ने कहा 'बाबा के प्रताप से यहाँ एकादशी उल्टा टाँग दी गई हैं; यहाँ कोई एकादशी का व्रत नहीं कर सकता।
बिल्लेसुर ने उन्हें भी हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
फिर सब लोग कलियुग की मूर्ति देखने गये।
कलियुग अपनी बीबी को कन्धे पर बैठाये बाप को पैदल चला रहा है।
सत्तीदीन की स्त्री ग़ौर से देखती रहीं। कई रोज़ बड़े आनन्द से कटे। भुवनेश्वर चलने की तैयारी हुई।
जगन्नाथ जी में जूठा नहीं होता, या दूसरे की जूठन खाना प्रचलित है।
इधर के लोग जिन्हें चौके की क़ैद माननी पड़ती है, वहाँ खुलकर एक दूसरे की जूठन खाते हैं।
कोई बुरा नहीं मानता। बिल्लेसुर ने जमादार और जमादारिन की पत्तलों में अपने जूठे हाथ से भात उठाकर डाल दिया।
वे कुछ न बोले, बल्कि खाते हुए हँसते रहे।